विश्वसनीयता बढ़ाने के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय के साथ मिलकर काम करे आयुष मंत्रालय
सेहतराग टीम
भले ही आयुर्वेद उपचार की सदियों पुरानी भारतीय पद्धति हो मगर आज भी उसके उपचार को आधुनिक चिकित्सा प्रणाली मान्यता नहीं देती है। आयुर्वेद और इसके जैसी अन्य चिकित्सा पद्धतियां आज भी वैज्ञानिक मान्यता के लिए छटपटा रही हैं। होम्यापैथी, यूनानी, सिद्धा आदि को वर्षों से अपने अस्तित्व के लिए जूझना पड़ रहा है। केंद्र सरकार ने भले ही इन चिकित्सा पद्धतियों के लिए आयुष मंत्रालय का गठन कर दिया हो मगर इसका बहुत अधिक फायदा इन पद्धतियों को नहीं मिल पाया है।
ऐसे में एक संसदीय समिति ने आयुष मंत्रालय से कहा है कि ‘उपचार के वैज्ञानिक एवं भरोसेमंद विकल्प’ के रूप में आयुष पद्धतियों की स्वीकार्यता बढ़ाने के लिए उसे आधुनिक चिकित्सा के साथ जोड़ने के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय के साथ मिलकर काम करना चाहिए।
आयुष विभाग से संबद्ध संसदीय स्थायी समिति ने इस बात पर भी बल दिया कि आयुष मंत्रालय को आयुष चिकित्सा के क्षेत्र में वैज्ञानिक अनुसंधानों को बढ़ावा देकर तथा आयुष औषधियों का सख्त गुणवत्ता नियंत्रण कायम कर इस उपचार पद्धति की विश्वसनीयता बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिए।
इससे पहले उसने आयुष को चिकित्सा की मुख्य धारा में लाने के लिए पारंपरिक चिकित्सा पद्धति में आधुनिक चिकित्सा की बातें और आधुनिक चिकित्सा में पारंपरिक चिकित्सा पद्धति की बातें शुरु करने के लिए पाठ्यक्रम में बदलाव की सिफारिश की थी।
समिति का यह दृढ़ मत है कि आयुष मंत्रालय को चिकित्सा की इस भारतीय पद्धति की ‘उपचार के वैज्ञानिक और भरोसेमंद विकल्प’ के रुप में स्वीकार्यता बढ़ाने के वास्ते उसे बढ़ावा देने और आधुनिक चिकित्सा के साथ जोड़ने की पहल करने की जरूरत है।
समिति ने हाल की अपनी रिपोर्ट में भारतीय चिकित्सा पद्धति एवं होम्यापैथी नीति, 2002 की रणनीति की प्रशंसा की जिसमें आयुष को स्वास्थ्य सुविधाओं के साथ जोड़ने की संकल्पना की गई है।
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